गोरखपुर से लखनऊ जाने वाली इंटरसिटी एक्सप्रेस कहने के लिए तो सुपरफास्ट है और किराया भी सुपरफास्ट का ही है लेकिन इसकी औसत चाल 55 किमी प्रतिघंटा से भी कम है। 2018 में इंटरसिटी को सुपरफास्ट कर दिया गया, (ads1) जिसके बाद से इसका किराया बढ़ गया लेकिन कुछ समय यात्रियों की डिमांड को देखते हुए इसके स्टापेज बढ़ा दिए गए।


स्टापेज बढ़ाए जाने से ट्रेन की औसत स्पीड घट गई और इसके सुपरफास्ट होने का औचित्य ही नहीं रह गया है। इसको लेकर यात्रियों में भी खासी नाराजगी है। दैनिक यात्री संघ के विनोद का कहना है कि वह अक्सर गोण्डा आना-जाना करते हैं। जब भी इंटरसिटी से जाता हूं तो किराया सुपरफास्ट का लगता है लेकिन ट्रेन पैसेंजर की तरह है। लगभग हर स्टेशन पर इस ट्रेन का स्टापेज है। (ads2)

सुपरफास्ट ट्रेन है तो उसकी सुविधाएं भी मिलनी चाहिए। रेलवे या तो इंटरसिटी को सुपरफास्ट के बजाए एक्सप्रेस कर किराया कम करे या फिर छोटे-छोटे स्टेशनों से स्टापेज हटाए। इस बाबत सीपीआरओ पंकज कुमार सिंह ने कहा कि गोरखपुर-लखनऊ इंटरसिटी सुपऱफास्ट के रूप में चलाई जाती है, यात्रियों की मांग पर दिए गए अतिरिक्त स्टॉपेज की सुविधा के कारण औसत गति में कुछ कमी आई है, जिसकी समीक्षा मुख्यालय स्तर पर की गई है।

औसत स्पीड न्यूनतम 55 किमी प्रति घंटा
भारतीय रेलवे ने मई 2007 में फैसला किया था कि यदि कोई रेलगाड़ी औसतन ब्रॉड गेज पर न्यूनतम 55 किमी प्रति घंटे और मीटर गेज पर 45 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है, तो उसे ‘सुपरफास्ट’ माना जाएगा।