बचपन की यादें




आवारा बना फिरता था मैं,

 जिस गलियों में चौराहों पर, 

वो चौराहे याद आती है।

 वो बचपन याद आता है,

 वो बचपन याद आता है।

 स्कूलों के मस्ती भरे दिन,

 खेल खिलौने हंसना रोना,

वो दोस्ती याद आती है।

 वो बचपन याद आता है,

 वो बचपन याद आता है। 

पिता की उंगली मां की लोरी,

 बहन की राखी भाई का प्यार,

 वो सर की डांट याद आती है।

 वो बचपन याद आता है,

 वो बचपन याद आता है। 

दादी की गोदी दादा का कंधा, 

नानी की कहानी नाना का डंडा,

 वो सुहानी शाम याद आती है। 

वो बचपन याद आता है, 

वो बचपन याद आता है।

होली के रंग दिवाली के पटाखे,

मेले के झूले जन्मदिन के तोहफे,

 वो मीठी गोली याद आती है।

 वो बचपन याद आता है, 

वो बचपन याद आता है।

नदी के किनारे कुँए के पनघट,

लहराते खेत बागों के आम, 

वो मंदिर की आरती याद आती है।

वो बचपन याद आता है, 

वो बचपन याद आता है। 

अंगुली से कट्टी हाथों से दोस्त,

 पल में लड़ना पल में मिलना,

 वो मासूमियत याद आती है।

 वो बचपन याद आता है, 

वो बचपन याद आता है।

मिट्टी के घरौंदे मिट्टी के खिलौने, 

गुड्डा गुड़िया गांव के भोज,

वो सारी बातें याद आती है।

 वो बचपन याद आता है,

 वो बचपन याद आता है। 

             

                      ✍️विक्रम चौधरी