मेरे बच्चे भी होनहार


मेरे बच्चे भी होनहार,

 और वो भी चार चार ।

 दो डॉक्टर, एक इंजीनियर,

 एक विदेश में रहता है।

 बड़ी व्यस्त हैं उसकी जिंदगी,

 पर फोन कभी कभी करता है।

 हाल चाल मेरा पूछे वो, 

कहता जल्दी मिलने आऊँगा।

 माँ मैं तुझको अपने संग, 

अपने घर ले जाऊँगा।

 बित गए हैं साल कई, 

अब तक न लौट के आया वो। 

जो छोड़ गया मुझको यहाँ,

फिर वापस नहीं बुलाया वो। 

अब तो कभी कभी वाला भी,

 वो फोन कभी न आता है।

 मैं जीवित हूँ या मर गई, 

ये देखने भी न आया वो।

 जो कहता था माँ तुझको, 

मैं अपने घर ले जाऊँगा। 

बड़े प्यार से उसने मुझको,

 मेरे घर से बाहर कर डाला। 

नौ महीने जिसको पेट मे रखा, 

जिसको जीना सिखलाया।

 आज उसी ने मेरी ममता को,

 तार-तार है कर डाला। 

अब तो ऊपर वाले से मैं,

 बस एक ही विनती करती हूँ।

 ऐसे बेटे न पैदा करना, 

गर करना तो मरा हुआ।

 थोड़े दिन तकलीफ तो होगी,

 पर ये दिन न दिखलाना। 

जब बेटा कोई ऐसे ममता को,

 तार-तार कर जाता हैं। 

सच पूछो तो उस दिन माँ बाप,

 जीते जी मर जाता है। 

जीते जी मर जाता है।


                                        ✍️विक्रम चौधरी