दहेज
एक बेटी की व्यथा सुनाने,
मन की बात बताने आयीहूँ।
दहेज से बड़ा अभिशाप न कोई,
ये तुम्हें समझाने आयी हूँ।
एक बेटी........................
मैं बेटी थी पापा की,
मुझे बड़े प्यार से पाला था।
गोद बिठा कर खाना खिलाया,
लोरी गाकर मुझे सुलाया था।
पढ़ लिख कर मैं बड़ा बनु,
यह सोच जतन से मुझे पढ़ाया था।
धूम - धाम से शादी कर,
अपने ससुराल मैं आयी हूँ।
एक बेटी............................
आते ही मुझे बड़े प्यार से,
सासु ने गले लगाया है।
ननद मेरी छोटी बहन और,
सबको अपना बतलाया हैं।
फिर मुझ को कमरे में भेजकर,
बेटे को उसने बुलाया है।
फिर पूछा है बेटे से की,
क्या-क्या मैं लेकर आयी हूँ।
एक बेटी.......................
जब ये जाना पापा ने मेरे,
दहेज में गाड़ी नहीं भेजवाया हैं।
प्यार उसी पल ख़त्म हो गया,
भूल गयी कि वो भी एक औरत हैं।
गली-गलौज और प्रताड़ना,
धक्के देकर मुझे भगाया हैं।
रोते-रोते फिर वापस मैं तो,
पापा के घर आयी हूँ।
एक बेटी. .....................
पापा ने मुझे समझा बुझाकर,
फिर ससुराल भिजवाया हैं।
पर ससुराल वालों ने तो,
कुछ और ही प्लान बनाया है।
रात को वो रस्सी ले आये,
गला घोंट मुझे लटकाया हैं।
दहेज के खातिर बली चढ़ी मैं,
मरण शैय्या पर वापस आयी हूं।
एक बेटी...........................
✍️विक्रम चौधरी